गर्भावस्था और तुलसी का प्रयोग -पंकज अवधिया

गर्भावस्था और तुलसी का प्रयोग

पंकज अवधिया     

बंगलुरु के एक प्रसिद्ध नेचुरोथेरेपी सेंटर से आया बुलावा निश्चित ही  महत्वपूर्ण था. यह सेंटर इस बात को लेकर  गम्भीर था कि गर्भावस्था के दौरान उनकी सलाह मानने वाले उनके ग्राहकों में से अस्सी से नब्बे प्रतिशत मामलों में प्रसव सातवे या आठवे महीने में हो जाता था. पहले इस पर ध्यान नही दिया गया फिर जब मामले बढे तो उनके संस्थापक ने तय किया कि वे अपने अनुमोदनों की सूक्ष्मता से जांच करेंगे। जांच में वे किसी निष्कर्ष में नही पहुँच पाये तो उन्होंने दुनिया भर के विशेषज्ञों को बुलावा भेजा।

एक दिन का पूरा समय लेकर मैंने पहले उनके सेंटर  द्वारा दिए जाने वाले अनुमोदनों की जांच की फिर उनके द्वारा दी जाने वाली  सामग्रियों को एक सिरे से चखना शुरू किया। सब कुछ ठीक था. अब वहाँ के विशेषज्ञों से मिलने की बारी थी. उनसे महीने दर महीने दिए जाने वाले अनुमोदनों पर चर्चा की. जब छठवे महीने पर बात पहुँची तो मेरे मन में अनायस ही एक प्रश्न आया. मैंने पूछा कि यदि इस समय कोई सर्दी-खाँसी की समस्या लेकर आये तो आप क्या सलाह देते हैं? उन्होंने बताया कि वे तुलसी की चाय देते हैं. मैंने कहा, चलिए देखते हैं कैसे बनती है तुलसी की चाय?

कैम्पस में उग रही तुलसी को तोड़कर पानी में उबाला और बन गयी चाय. वही पीढ़ीयों पुराना नुस्खा। कौतुहल से चाय को छानने के बाद बचे हुए हिस्से को देखा तो माथा ठनका। उसमे तुलसी की पतियाँ तो थी पर साथ में मंजरी थी. यही थी फसाद की जड़.

सेंटर में तुलसी की पत्तियों की ही चाय देने का प्रावधान था. यह चाय बनाने वाले की लापरवाही थी या कहे कि अज्ञानता थी. 

शायद इस छोटी पर महत्वपूर्ण गलती का पता कभी नही चलता यदि सेंटर के संस्थापक ने संज्ञान नही लिया होता।


        

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