बधिया करने वाली बूटी से हवन की गल्ती - पंकज अवधिया
बधिया करने वाली बूटी से हवन की गल्ती
पंकज अवधिया
अल सुबह सैर से लौटा तो एक परिचित दंपत्ति को घर के दरवाजे पर इन्तजार करते पाया. अभी पिछली रात ही तो इनकी शादी के समारोह से लौटा था. बड़े सकुचाते हुए पुरुष ने मुझे एक कोने में ले जाकर "बात" न बनने और उसके लिए कुछ उपाय बताने का अनुरोध किया। एक बारगी तो मुझे हंसी आ गयी कि एक रात में ही मैदान छोड़ आये. मैंने उन्हें कहा कि धैर्य रखें। सब कुछ ठीक हो जाएगा।
बात आयी-गयी हो गयी. एक सप्ताह बाद फिर उनका फोन आ गया. "मुझे लगता है कि मैं नपुंसक होता जा रहा हूँ." उधर से आवाज आयी. महाशय नाना प्रकार की दवाओं के सेवन के बाद ऐसा कह रहे थे.
अगली सुबह सैर से लौटते हुए उनके घर चला गया. घर में कुछ जलने की बास आ रही थी. कुछ धुआँ भी फैला हुआ था. उनकी पत्नी ने बताया कि वे रोज सुबह नहा-धोकर जड़ी-बूटियां जलाकर शरीर और घर की शुद्धि करते हैं. अचानक हवा का तेज झोका आया तो मेरा हाथ अपने आप नाक पर चला गया और मैं घर से बाहर भागा। धुएं में कुछ तो गड़-बड था.
आग बुझा दी गयी. मैंने जड़ी-बूटियों की सूची मंगाई तो उसमे कुछ भी खोट नजर नही आया. अब जड़ी-बूटीयों की जांच का मन बनाया। 18 को तो पहचान लिया पर दो को नही पहचान पाया। दस बजे जड़ी-बूटी की दुकान पर जाकर पता किया तो मेरे होश उड़ गए. उनमे से एक बूटी थी छोटी ब्रम्हडंडी। पड़ताल करने पर दुकानदार ने माफी मांग ली बिना देर के. नौकर की गल्ती से यह हुआ था.
छोटी ब्रम्हडंडी का प्रयोग देहाती इलाको में चरवाहे बछड़ों को बधिया करने के लिए करते हैं. सूखी बूटी में आग लगा दी जाती है फिर बछड़े को अकेला छोड़कर चरवाहे नाक बंदकर बहुत दूर भाग जाते हैं. इसी बूटी को जलाकर महाशय अनजाने में ही अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे थे.
सो, फसाद की जड़ मिल गयी. उनकी किस्मत सचमुच अच्छी थी क्योंकि एक बार काम हो जाने के बाद फिर वापसी का रास्ता सम्भव नही था. उन्हें संन्यास लेना पड़ता।
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