मालिश के तेल में धतूरा और बेहोशी से उसका संबंध - पंकज अवधिया

मालिश के तेल में धतूरा और बेहोशी से उसका संबंध 


पंकज अवधिया

"हमारे पिताजी खाना खाते-खाते आधे में ही सो जाते हैं. चार-पांच घंटे तक सोते रहते हैं और फिर उठने पर बड़-बड़ाने लगते हैं." कुछ समय पहले एक बुजुर्ग को मेरे पास लाया गया उनके परिजनो द्वारा। मुझे बताया गया कि किसी मनोचिकित्सक से उनका उपचार चल रहा है. मैंने बुजुर्ग से बात की तो वे सामान्य लगे. हाँ, उनकी दवाएं और उनके परिजन उन्हें मनोरोगी सिद्ध करने में लगे थे. दो घंटे की चर्चा के बाद मैंने उनसे अगले दिन आने को कहा. वे नही आ पाये तो मैंने उनके द्वारा एक दिन पहले पहने गये कपडे मंगवा लिए. कपड़ों को सूँघा तो चिर-परिचित गंध आई. जल्दी ही सारे फ़साद की जड़ भी मिल गयी.

बुजुर्ग के घुटनो में दर्द रहता था इसलिए खाने के पहले वे एक जानी-मानी दवा कम्पनी का तेल घुटनो में लगाते थे. तेल लगाने के बाद कपड़ों में हाथ पोछकर वैसे ही खाना खा लेते थे और फिर आधे खाने में ही उन्हें नींद आने लगती थी. दवा वाले तेल की शीशी मंगवाई गयी. अनुमान के मुताबिक़ ही उस तेल में धतूरे की बड़ी मात्रा थी. सारा किया धरा इस मादक धतूरे ही का था. दवा कम्पनी को यह लिखना चाहिए था कि तेल के इस्तमाल के बाद साबुन से अच्छी तरह से हाथ धोयें। 

बुजुर्ग ने हाथ धोकर खाना खाना शुरू किया नहीं कि उन्हें इस परेशानी से मुक्ति मिल गयी. और इस तरह एक भला-चंगा इंसान पागल घोषित होने से बच गया.

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