अलसी की अति और सूखे मल की समस्या - पंकज अवधिया

अलसी की अति और सूखे मल की समस्या 


पंकज अवधिया    

नागपुर से आये  सज्जन बरसों से भगंदर से प्रभावित थे पर वे अपनी इस समस्या के लिए मेरे पास नही आये थे. उनकी समस्या मल त्याग के समय अति सूखे मल की थी जिससे उनकी पुरानी समस्या फिर से उभर जाती थी. 

पांच घंटों तक उनसे चर्चा करने के बाद भी इस समस्या का कारण न मिल सका. वे वापस लौट गये. उनकी समस्या बरकरार रही. 

कंसल्टेशन कार्य से  नागपुर जाना हुआ तो उन सज्जन ने घर पर दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया। घर का भोजन था. ज्यादा ताम-झाम नही था. भोजन के मध्य में  स्वादिष्ट चटनी परोसी गयी. पूछने पर  पता चला कि अलसी के बीजों से बनायी गयी है. सभी उसे चटनी की तरह खा रहे थे पर वे सज्ज्न उसे सब्जी की तरह खा रहे थे. कारण पूछने  पर झट से उन्होंने टेबलेट पर अलसी के कैंसर रोधी गुणो पर नेट पर उपलब्ध लेख पढ़ा दिया। 

भोजन के अंत में जब मैंने उनसे अलसी का प्रयोग सम्भल कर करने को कहा तो उनका स्वर विरोध से भर गया. उन्होंने न केवल अपने परिवार वालों बल्कि सभी मित्रों को जबरदस्ती अलसी खिलाना आरम्भ किया था. मैंने उनसे कहा कि आप एक सप्ताह इसे बंद करके देखें यदि राहत न महसूस हो तो फिर से शुरू कर दीजियेगा। वे मान गये.


अत्यंत सूखे मल की समस्या जाती रही. साथ में दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं से उन्हें आराम मिला। चटनी के रूप में अलसी के इस प्रयोग की बात उन्होंने अपने रायपुर प्रवास के दौरान नही बताई थी. कई बार ऐसी छोटी छोटी भूलों से घंटों का समय बिना किसी सार्थक परिणाम के जाया  हो जाता है. 

  

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