ब्रम्ह रसायन में गन्ने की जड़ का महत्व और मूत्र रोग - पंकज अवधिया

ब्रम्ह रसायन में गन्ने की जड़ का महत्व और मूत्र रोग 

पंकज अवधिया

हरिद्वार से मिलने आये स्वामी जी वैसे तो ६० से अधिक उम्र के थे  पर उन्हें देखकर इसका अनुमान लगाना कठिन जान पड़ता था. उन्होंने बताया कि  चिर यौवन के लिए वे शास्त्रों में वर्णित ब्रम्ह रसायन का विधिपूर्वक प्रयोग कर रहे हैं. पर इसके प्रयोग से उन्हें एक नई परेशानी हो रही थी. बड़े सकुचाते हुए बोले कि साल भर इस रसायन के कारण एक बार भी बीमार नही पड़ता पर इसे जब से लेना शुरू किया है तब से रात को बिछावन पर अपने आप पेशाब हो जाती है. 

किसी समय ब्रम्ह रसायन पर तीन घंटे का लम्बा व्याख्यान देने का माद्दा रखने वाला मैं उनकी इस बात से अचरज में पड़ गया. वे ब्रम्ह रसायन में प्रयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों की लम्बी-चौड़ी सूची लेकर आये थे.  अध्ययन शुरू किया। 

नजर जीवक और ऋषभक नामक वनस्पतियों पर ठहर गयी. इनका वर्णन तो बहुत से प्राचीन औषधीय मिश्रणों में मिलता है पर आजकल इनके स्थान पर दूसरी वनस्पतियों का प्रयोग होता है. अधिक मांग के कारण इनकी उपलब्धता नही के बराबर रह गयी है.

पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अपने ब्रम्ह रसायन में इन दोनों वनस्पतियों का प्रयोग नई करते हैं. इनके स्थान पर दूसरी वनस्पतियों का प्रयोग भी नही करते हैं. 

इस पर मैंने पूछा कि फिर आप अपने ब्रम्ह रसायन में गन्ने की जड़ का प्रयोग क्यों करते हैं? गन्ने की जड़ की मुख्य भूमिका जीवक और ऋषभक के गुणो को बढ़ाना है और ये दोनों वनस्पतियाँ गन्ने की जड़ के हानिकारक प्रभाव को दूर करती है. किसी भी औषधीय मिश्रण को इस तरह बनाया जाता है कि उनके घटकों का आपसी संतुलन बना रहे. यदि आपने एक भी घटक से छेड़छाड़ की तो सारा मिश्रण ताश के महल की तरह भरभराकर गिर जाता है और कई बार तो जीवन देने वाली औषधि विष का रूप ले लेती है.

स्वामी जी ध्यानपूर्वक सब सुनते रहे और फिर वापस जाकर उन्होंने अपने ब्रम्ह रसायन से गन्ने की जड़ को हटा दिया। उनकी  समस्या उसी रात से खत्म हो गयी.

स्वामी जी एक बार फिर पधारे हरिद्वार से धन्यवाद देने के लिए.

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