हवन सामग्री में मिलावट और आँखों को खतरा -पंकज अवधिया
हवन सामग्री में मिलावट और आँखों को खतरा
पंकज अवधिया
अष्टमी का हवन चल रहा था. मैंने ड्रायवर से कहा कि हवन होने के बाद ही चलेंगे। जंगली इलाका था और छोटी सी पहाड़ी के ऊपर मंदिर था. हवन स्थल पर गया तो दृश्य देखकर अचरज से भर गया. सभी लोगों की आँखों से अश्रु की अविरल धारा बह रही थी. कुछ देर बाद मेरी आँखों का भी यही हाल हुआ.
आस-पास भीड़ में देखा तो क्षेत्र के कुछ पारम्परिक चिकित्सक दिख गए. वे भी आँखों की जलन से विस्मय में दिखे। उन्हें अलग से बुलाकार चर्चा की और संदेह जताया कि हवन सामग्री में कुछ गड़बड़ लगती है. उन्होंने मेरा समर्थन किया पर धार्मिक कार्य में किसी तरह की बाधा वे नही चाहते थे.
आयोजन समिति के लोगो के साथ बची खुची हवन सामग्री की जाँच की गयी. फिर सूची से उनका मिलान किया गया. सब कुछ ठीक लगा. केवल आक की लकड़ी पर कुछ संदेह था. उसका बड़ा हिस्सा तो ठीक लगा पर कुछ शाखाएं मिलावट की ओर इशारा कर रही थी. संदेहास्पद हिस्से को झट से पानी में उबाला तो पानी का रंग लालिमा लिए हुए हो गया. फसाद की जड़ मिल गयी थी.
यह बेशरम (आइपोमिया) की शाखाएं थी जो वास्तविक हवन सामग्री का हिस्सा नहीं थी. इसके धुएं से आँखों को बहुत नुकसान होता है और आँख भी जा सकती है.
भक्तों की आँखों से आँसू अभी भी बह रहे थे. हवन रोका नही जा सकता था इसलिए विचार विमर्श करके आम की लकड़ियाँ उसमे डलवा दी गयी ताकि बेशरम का प्रभाव कुछ कम हो जाए.
हवन के बाद आयोजन समिति के लोगों को आस-पास भ्रमण करवाकर सभी वास्तविक हवन सामग्रियों की पहचान करवा दी गयी. इस बार उन्होंने पास के शहर से हवन सामग्री खरीदी थी. शहरों से जड़ी-बूटियाँ लेना आजकल नई आफत मोल लेने की तरह है.
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