व्रत में सिंघाड़ा और मूत्र रोग की समस्या- पंकज अवधिया

व्रत में सिंघाड़ा और मूत्र रोग की समस्या


 पंकज अवधिया

एक सुबह एक संभ्रांत बुजुर्ग महिला को मेरे पास लाया गया और बताया गया कि वे पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं, डायबीटीज से लेकर हाइपरटेंशन जैसे आज के महारोगों से बची हुयी हैं. संयमित जीवन जीती हैं और जितना शरीर के लिए जरुरी है उतना ही भोजन करती हैं. 

कुछ समय से उन्हें खुलकर पेशाब नही आ रही थी जबकि वे पर्याप्त मात्रा में पानी पीती थी. उनके परिजनो ने एक मोटा गठ्ठर मुझे थमाया और कहा कि हर सम्भव डाक्टरी जांच हमने करवायी और शायद ही कोई ऐसी पैथी हो जिसे हमने नही आजमाया। फिर भी समस्या बरकरार है. कुछ विशेषज्ञ कहते है कि अधिक उम्र के कारण ऐसा हो रहा है. 

प्रश्नो का दौर शरू हुआ. उन्होंने बड़े अच्छे ढंग से सभी जवाब दिए. उन्होंने बताया कि सप्ताह में दो बार वे व्रत रखती हैं और केवल फलाहार ही खाती हैं. कई बार तो सप्ताह में चार दिन व्रत रखा जाता है. यह एक अच्छा अभ्यास था. 

काफी सर खपाने के बाद ऐसा लगने लगा कि हो न हो अधिक उम्र इसका कारण है. मैं उनसे हुयी बातचीत रिकार्ड कर रहा था. मैंने पूरी रिकार्डिंग फिर से सुनने का मन बनाया। व्रत पर ध्यान केंद्रित किया तो व्रत में खाई जाने वाली भोजन सामग्री की तरफ ध्यान गया. जल्दी ही यह आभास हो गया कि सही सूत्र हाथ में आ गया है.

व्रत में उनके द्वारा सिंघाड़े का प्रयोग किया जाता था कभी ताजा तो कभी हलवे के रूप में. सभी व्रत में वे कुछ खाएं या न खाएं पर सिंघाड़ा अवश्य खाती थी. सिंघाड़ा मूत्र प्रणाली के कई दोष उत्पन्न करता है विशेषकर यदि अधिक मात्रा में लिया जाए. मूत्रावरोध के लिए वह  उत्तरदायी होता है. मैंने उनसे कुछ समय तक सिंघाड़ा न खाने और फिर कम मात्रा में खाने को कहा तो वे बिफर गयी और सिंघाड़ा के गुण गिनाने लगी. उनके परिजन उन्हें समझाने लगे और फिर वे लौट गए.

एक सप्ताह बाद मोदक से भरा एक बड़ा सा डब्बा लिए उनके परिजन आये और उन्होंने सूचना दी कि अब समस्या नही है, सब कुछ पहले जैसा सामान्य है.     

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